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सोचिए क्या होता अगर वो शख्स अंग्रेजों के कहने पर गांधी जी को दे देता जहर


16 अप्रैल को किसानों का दुख सुनने जसौली-पट्टी जाने के क्रम में चंद्रहिया के समीप एक अंग्रेज दारोगा नोटिस लेकर गांधीजी के पास पहुंचा। उसमें अविलंब चंपारण छोड़ने का फरमान जारी किया गया था। पर, उन्होंने चंपारण नहीं छोड़ा और शासनादेश की अवज्ञा कर मोतिहारी आ गये। अगले दिन निषेधाज्ञा तोड़ने के उल्लंघन में तात्कालीन एसडीओ जार्ज चंदर की अदालत में 18 अप्रैल को हाजिर होने का आदेश मिला। करीब दो हजार लोगों के साथ बापू ने 18 अप्रैल को न्यायालय में हाजिर होकर ऐतिहासिक बयान दिये। तत्पश्चात एसडीओ ने गांधीजी को जेल भेज दिया। हालांकि 20 अप्रैल को ही उनपर दर्ज मुकदमे उठा लिये गये।
मुजफ्फरपुर। अंग्रेजों के जुल्म से जब चंपारण त्रस्त था तो पंडित राजकुमार शुक्ल के प्रयास से 15 अप्रैल 1917 अपराह्न् तीन बजे महात्मा गांधी पहली बार मोतिहारी पहुंचे थे। अगले दिन उन्होंने सत्याग्रह का जो बिगुल फूंका, वह चंपारण सत्याग्रह के नाम से प्रसिद्ध है। उन्होंने गोरों के अत्याचार से निलहे किसानों को मुक्ति दिलाई और किसानों से जबरन नील की खेती कराने की प्रथा पर रोक लगी। चंपारण सत्याग्रह महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन का भारत भूमि पर पहला प्रयोग था।     .........................................................................................
                   ..............................................      प्रसिद्ध समाजसेवी पंडित राजकुमार शुक्ल ने 27 फरवरी 1917 को मोहनदास करमचंद गांधी को एक पत्र लिखा था। इसी पत्र ने आजादी की लड़ाई के पहले अहिंसक आंदोलन का बिगुल फूंका और चंपारण सत्याग्रह ने गांधी को महात्मा बना दिया।...................................
                    गांधीजी को जहर मिला हुआ दूध दिया था अंग्रेजों ने........................................
जेल में किसानों से मिलने के क्रम में अंग्रेजों ने रसोइया बत्तख मियां के माध्यम से दूध में जहर मिलाकर गांधीजी को मारने का प्रयास भी किया। पर, बत्तख मियां ने गांधीजी को इसकी जानकारी देकर उन्हें बचा लिया।
......29 नवंबर 1917 को पास हुआ था चंपारण एग्रेरियन बिल...............................//////
नील की खेती से मुक्ति व टैक्स कम करने के लिए गांधीजी ने एक आयोग बनाया। इसमें डॉ. राजेंद्र प्रसाद, रामनवमी बाबू और धरनीधर प्रसाद के साथ तुरकौलिया के ऐतिहासिक नीम के पेड़ के नीचे बैठकर गरीब किसानों का बयान दर्ज किया गया। 29 नवंबर 1917 को मि. मौड़ ने चंपारण एग्रेरियन बिल अंग्रेजी अदालत में पेश किया, जिसे अंग्रेजी हुकूमत ने स्वीकृत कर लिया। यह बिल तीन कठिया प्रथा हटाने एवं बेसी टैक्स को कम करने से संबंधित थी। बापू के चंपारण सत्याग्रह की यह पहली विजयी थी। इस विजयी के बाद निलहों के अत्याचार व अनाचार की चक्की में पिस रहे निदरेष-निरीह जनता को मुक्ति मिली और उन्हें संघर्ष का एक नया संस्कार मिला।
                                      
किसानों से 40 प्रकार का टैक्स वसूलते थे गोरे
चंपारण के किसानों पर अंग्रेज तरह-तरह से जुल्म ढाहते थे। करीब 40 प्रकार के टैक्स वसूल कर उनका लहू चूस लेते थे। वहीं प्रति एक बीघा जमीन पर तीन कट्ठा जमीन में नील की खेती करनी पड़ती थी। अतीत का वह काला अध्याय आज भी जब चंपारणवासियों के जेहन में है।

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16 अप्रैल 1917 को फूंका था चंपारण सत्याग्रह का बिगुल..............................
16 अप्रैल को किसानों का दुख सुनने जसौली-पट्टी जाने के क्रम में चंद्रहिया के समीप एक अंग्रेज दारोगा नोटिस लेकर गांधीजी के पास पहुंचा। उसमें अविलंब चंपारण छोड़ने का फरमान जारी किया गया था। पर, उन्होंने चंपारण नहीं छोड़ा और शासनादेश की अवज्ञा कर मोतिहारी आ गये। अगले दिन निषेधाज्ञा तोड़ने के उल्लंघन में तात्कालीन एसडीओ जार्ज चंदर की अदालत में 18 अप्रैल को हाजिर होने का आदेश मिला। करीब दो हजार लोगों के साथ बापू ने 18 अप्रैल को न्यायालय में हाजिर होकर ऐतिहासिक बयान दिये। तत्पश्चात एसडीओ ने गांधीजी को जेल भेज दिया। हालांकि 20 अप्रैल को ही उनपर दर्ज मुकदमे उठा लिये गये।
 

  
 

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